History Class, General Knowledge : भारत के इतिहास 17 मार्च 1527 दो बेहद अहम दिन हैं. इस दिन आगरा से 35 किलोमीटर दूर खानवा के मैदान में बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बीच जंग लड़ी गई थी. जिसमें हुई राणा सांगा की शिकस्त के बाद भारत में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी. इसमें राणा सांगा की तरफ से एक मुस्लिम शासक वीर हसन खां मेवाती ने भी जंग लड़ी थी. जिनकी वीरता और देशभक्ति के लोकगीत आज भी मेवात में गाए जाते हैं.
राणा सांगा के घायल होने पर उनके सैनिक उन्हें बचाकर दूर ले गए, तो हसन खां मेवाती ने मोर्चा संभाला और आखिरी सांस तक लड़ते रहे. मृत्यु के बाद हसन खां को अलवर में दफनाया गया. उनकी कब्र पर एक छतरी बनी है. जिसे हसनकी छतरी कहते हैं.
हसन खां मेवाती अलवर के शासक अलावल खां के बेटे और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के मौसेरे भाई थे. उन्होंने बाबर के खिलाफ पहली लड़ाई अपने पिता अलावल खां के साथ पानीपत के प्रथम युद्ध में लड़ी थी. वह इसमें इब्राहिम लोदी की तरफ से लड़ रहे थे. हसन खां मेवाती ने बाबर के खिलाफ दूसरी लड़ाई 28 फरवरी 1527 को राणा सांगा के साथ बयाना में लड़ी थी. जिसमें बाबर बुरी तरह हारा था. इसके बाद बाबर ने एक बार फिर सेना इकट्ठी की और 17 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में आ डटा. यहां भी हसन खां मेवाती ने आखिरी सांस तक राणा सांगा का साथ दिया.
हसन खां मेवाती की वीरता के गीत
मेवात में वीर हसन खां मेवाती की याद में आज भी बड़े गर्व से गीत गाए जाते हैं, जो इस प्रकार है-
बाबर सू जा कर लड़ो, रोप दई छाती.
रहतो जंग अधूरो खानवा, हसन खां जे ना होतो मेवाती..
यह मेवाती वह मेवाड़ी मिल गए दोनों सेनानी .
हिन्दू-मुस्लिम भाव छोड़ मिल बैठे दो हिन्दुस्तानी..
जैन मंदिर में रखी है हसन खां मेवाती पर लिखी रचना
हसन खां मेवाती की वीरता पर सूरदास के समकालीन मशहूर कवि नरसिंग मेव ने ऐतिहासिक रचना की है, जिसका नाम ‘हसन खां की कथा’ है. यह टोंक जिला के दिगंबर जैन मंदिर (नेमीनाथ स्वामी) में रखी हुई है. हालांकि यह रचना अधूरी है. उन्होंने यह पिंगल भाषा में लिखी है.